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सत्यम शिवम सुन्दरम-मौनी बाबा अद्वैत शिवशक्ति परमधाम दूहा में मौनी बाबा की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने आने वालों का दूसरे दिन भी लगा रहा तांता

 

सिकन्दरपुर(बलिया)क्षेत्र के ड्हा गाँव स्थित अद्वैत शिवशक्ति परमधाम में मौनी बाबा को श्रद्धांजलि से बाहरी एवं क्षेत्रीय साधु संतों के साथ ही उनके मानने वालों का आना जाना लगा रहा।लोग आते बाबा की समाधि पर दो मिनट मौन रह श्रद्धा सुमन  के अर्पण कर प्रसाद ग्रहण कर वापस चले जाते।सुबह से आने जाने का यह सिलसिला जो शुरू हुआ वह देर शाम तक चलता रहा।इस दौरान आश्रम में मौजूद बाबा के शिष्यों एवं सेवकों द्वारा आने जाने वालों का भरपूर सत्कार किया जाता रहा।

आश्रम में प्रवास के दौरान साधु सन्त व दीगर लोग मौनी बाबा शरीर त्यागने के कारणों एवं राजसुय महायज्ञ के बारे में आश्रम के साधु संतों से जानकारी हासिल करने से भी नहीं चूकते थे।

बता दें कि स्वामी ईश्वरदास ब्रम्हचारी मौनी बाबा द्वादस वर्ष मौनव्रती थे जिन्होंने पिछले 10 जनवरी को शरीर त्याग दिया था।वे श्री महेन्द्र मुनि के शिष्य एवं शिवशक्ति सम्प्रदाय के पोषक थे।सिकन्दरपुर क्षेत्र में पदार्पण के बाद उन्होंने अनेक ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये हैं जिस के लिए हमेशा याद किये जाते रहेंगे।उनके द्वारा दूहा में स्थापित अद्वैत शिवशक्ति परमधाम अपने स्थापना काल से इलाकाई लोगों के आस्था का केन्द्र बना हुआ है।

साक्ष्यों के अनुसार यहां आने के पूर्व ईश्वरदास ब्रम्हचारी सर्प्रथम वृंदावन स्थित श्री शाक्य सदाशिव कुञ्ज के सिद्ध ब्रम्हचारी श्री महेन्द्र मुनि जी महाराज के शिष्य थे।1969 में अपबे गुरू के शिवलीन हो जाने के बाद वहां मध्य प्रदेश के  ग्वालियर चले गए।ब्रह्मचारी जी भ्रमण करते हुए 1970 के नवम्बर महीने में सिकन्दरपुर क्षेत्र के मलवार गांव में पहुंचे। जहां करीब एक वर्ष तक रह कर दीन दुखियों की सेवा करते रहे।बाद में वे क्षेत्र के बिहरा गांव के पूर्वी भाग में पहुंच सरयु नदी के किनारे उन्होंने अपनी धूमि रमाई और वहां एक मचान का निर्माण करा कर माघ पूर्णिमा(30 जनवरी)1972 को मौन धारण कर अंतर्मुखी साधना में लीन हो गए।मौन धारण करने के बाद वे स्लेट व पेंसिल के माध्यम से आने वाले लोगों से सूचनाओं का आदान प्रदान करने लगे।

इस दौरान निश्चित समय की पूर्णता के बाद 13 जुलाई 1984 को उन्होंने हजारों अपने मानने वालों के समक्ष अपने मौन साधना को समाप्त किया।इस औरन उनके मुख से सत्यम शिवम सुन्दरम निकला।जैसे ही उन्हों मैन व्रत तोड़ा वहां मौजूद भीड़ द्वारा बुलन्द किये जा रहे गगनभेदी नारों से समूचा इलाका गूंज उठा।व्रत तोड़ने के साथ ईश्वरदास ब्रम्हचारी मौनी बाबा कहलाने लगे।

इस दौरान उन्होंने अनेक ऐसे कृत्य किये जिसने उनकी ख्याति के प्रसार में सहायक बने।अपना अद्वैत शिवशक्ति परमधाम के निर्माण के साथ ही जीर्णशीर्ण स्थिति में पहुंच गए श्री वनखण्डी नाथ मठ को नया लुक दिया।साथ ही अनेक मठ व मंदिरों का भी सुंदरीकरण कराया।इसी के साथ छत्तीसगढ़ में एक नए आश्रम व सिकन्दरपुर में अद्वैत शिवशक्ति सत्संगाश्रम का भी निर्माण कराया है।



रिपोर्ट - जितेन्द्र राय 

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