सिकन्दरपुर(बलिया) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को मनाया जाने वाला छठ महा पर्व वस्तुतः सूर्य उपासना का पर्व है।किन्तु तिथि को अत्यधिक महत्व देने के कारण यह तिथि के नाम पर ही छठ पर्व के नाम से प्रचलित हो गया।लोक जिह्वा पर साधते साधते सूर्यदेव तो विस्मृत हो गए और उनकी जगह ले लिया एक देवी ,छठ देवी या छठी मैया ने। आज इसी रूप में सर्वमान्य और सर्व प्रचलित है।सरकारी कार्यालयों में भी इसे छठ पर्व ही कहा जाता है।
सच्चाई तो यही है कि यह सूर्योपासना का पर्व है।छठ पर्व के द्वारा छठ व्रती सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।यह तथ्य है कि सूर्य जगत का पालक हैं।उन्हीं के ताप से जीवन और जगत दोनों संचालित होते हैं।मानव ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य ही है।सारी फसलें,फल,फूल और वनस्पतियों का पोषण उन्हीं के ताप से ही होता है।यहां तक कि इन फसलों ,बृक्षों और वनस्पतियों को जल का प्रदाता भी सूर्य ही हैं।सूर्य की किरणें समुद्र के खारे जल को अपने प्रखर ताप से बादल बना कर धरती पर पानी रूपी अमृत बना कर बरसा देती है।और "यह जल ही जीवन है"को सार्थक कर देती है।
कहना यह कि इस पर्व के माध्यम से सारे फल और वनस्पतियां सूर्य को अर्पित कर व्रती उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।एक विशेष बात यह है कि इस पर्व में अस्तानचलगामी सूर्य को भी अर्ध्य प्रदान किया जाता है जबकि लोकवाणी यह है कि उगते सूर्य को सभी नमन करते हैं,अस्त होते सूर्य को कोई नहीं।यह क्रिया मानव को यह सन्देश देती है कि अपने पर उपकार करने वाले तत्व व्यक्ति का उसके उत्थान और पतन दोनों स्थितियों में समान रूप से सम्मान किया जाना चाहिए।यह क्रिया समभाव की पोषक है।
सौजन्य से-विवेकानन्द राय
रिपोर्ट / जितेंद्र राय
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